User:Kavi Hemant Rai

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वस्तु नहीं। मैं नारी हूँ!


माना की,घर चलाने की जिम्मेदारी हूँ। पर, कोई वस्तु नहीं मैं नारी हूँ।

बच्चों को पाला करती हूँ । मैं घर भी संभाला करती हूँ। हर-घर वंश यूंही चलते रहें। क्या इसलिए,ही बस पधारी हूँ? कोई वस्तु नहीं मैं नारी हूँ।

सूने ससुराल में आकर,घर को मैं चहकाती हूँ। आंगन की सूखी तुलसी को पानी दे फिर उगाती हूँ। एक वक्त भी जहां ना खाना बनता था। वहाँ दो वक्त बनाती हूँ। बासी-सूखी जो खाते थे। उन्हें ताज़ा हलुआ-पूरी खिलाती हूँ। सबके भोबे भरने के बाद बचा खुचा मैं खाती हूँ। सबके सो जा ने के ही बाद

ज़मीन पर लोट जाती हूँ।

छोटी सी गलती हो जाने पर बाल्टी भर-भर लाछन लगाते हैं। और ग़लती की जो वजह मैं देदू तो कहते हैं कि, जु़बान बहुत चलाती हूँ।


औरत जात में पैदा हुई। मर्यादा की हद रखें में जारी हूँ। मर्यादा के चक्कर में ही पिस कर रह गई। इसीलिए ही बरसो से मैं सब कुछ सहती जारी हूँ।

पति के निकम्मा होने पर मैं, बाहर कमाया करती हूँ। दौड़ी-दौड़ी मैं घर को आ फिर खाना बनाया करती हूँ। ठलुआ, ठरकी, निकम्मा हो। या कितना भी आवारा हो। लाख बुराईयाँ हो उसमें पर फिर भी मुझे गवारा हो। रहे सदा वो मेरे साथ बस, इतनी इच्छा रखती हूँ। कमियां उसमें होने पर भी मैं उसकी पूजा करती हूँ। लम्बी आयु के लिए उसकी। व्रत करवा चौथ भी रखती हूँ। मरते दम तक साथ रहूंगी ये ज़ुबा पे मैं लाती हूँ। दोख़ा मैं कभी न दूगीं। इतना विश्वास दिलाती हूँ । क्योंकि न ही मैं आवारी हूँ। और ना ही व्यभिचारी हूँ। कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं। मैं भारत देश की नारी हूँ।


नही चाहिये धन दोलत, नहीं मैं कोई भिखारी हूँ। पर,प्यार की किश्त की, है,मुझे ज़रूरत,बस इतनी ही आभारी हूँ।

कोई वस्तु नहीं, मैं एक नारी हूँ।

~हेमंत राय।